Monday, March 7, 2022

Ashok Lav Ki Laghukathayen --International Hindi Samiti America

INTERNATIONAL HINDI ASSOCIATION'S NEWSLETTER फरवरी 2022, अंक ९ प्रबंध सम्पादक: सुशीला मोहनका
अशोक लव नें दिल्ली विश्वविद्यालय और हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा ग्रहण की है। उन्होंने नेशनल म्यूजियम, नयी दिल्ली से ‘आर्ट एप्रीसियेशन’ कोर्स भी किया है। उनकी प्रथम रचना १९६३ में प्रकाशित हुई थी, उस समय वे स्कूल में पढ़ते थे। उन्होंने ३० वर्ष आध्यापन किया है। वे पत्रिकारिता के क्षेत्र में कार्य करते है। उनकी साहित्यिक और शैक्षिक लगभग १५० पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। अभी ये अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति की भारत शाखा के दिल्ली अन.सी.आर. शाखा के अध्यक्ष है। उनकी दो लघुकथाएँ छोटे बच्चों के लिए नीचे दी जा रही है| दो लघुकथाएँ १) लघुकथा- पापा तो पापा होते हैं मानवी दूसरी कक्षा में पढ़ती थी। लॉकडाउन के पैंतीसवें दिन उसका धैर्य बिखरने-बिखरने को हो गया था। वह सारी स्थिति समझ रही थी। उसने हठ करना छोड़ दिया था अन्यथा प्रत्येक शनिवार वह हठ करके मम्मी-पापा को डिनर के लिए बाहर ले जाने पर विवश कर देती थी। उसने भाँति-भाँति की फ़रमाइशें बंद कर दी थीं। वह जानती थी मॉल बंद थे, बाज़ार बंद थे। अब मित्रों के साथ वीडियो-चैटिंग कर लेती थी। उसकी कक्षाएँ ऑनलाइन होती थीं। वह अपने गानों की वीडियो बनाती थी। पेंटिंग करती थी। वह लॉकडाउन का समय व्यतीत करना सीख गई थी। छह वर्ष की मानवी और कितना धैर्य रखती ! उसने पापा को कहा-"पापा, आज मैं आपके साथ दूध लेने जाऊँगी। मैं मास्क लगा लूँगी।" वह इसके आगे कुछ कहती परंतु उसका गला रुँध गया था। उसकी आँखों में आँसू तैरने लगे थे। "अरे, हमारी मानवी तो बहादुर बच्ची है। हम अभी एकसाथ दूध लेने चलेंगे। मदर डेयरी से चॉकलेट और आइसक्रीम भी लेंगे।"पापा ने उसे गले लगाते हुए कहा। पापा ने अपने आँसू रोक रखे थे क्योंकि वे पापा जो थे। २) लघुकथा - बेचारा जगदीश वृद्धा पत्नी पति को धमकाते हुए कह रही थी-" शुभम दूध लाने नहीं जाएगा।" वृद्ध जगदीश समझा रहा था-" टीवी पर बार-बार चेतावनी दी जा रही है, बार-बार समझाया जा रहा है, साठ वर्ष से अधिक के वरिष्ठ नागरिक घर से बाहर न निकलें। मैं तो सत्तर के हो गया हूँ।" नारायणी कहने लगी-" आपको कोरोना ने संक्रमित कर दिया तो क्या अंतर पड़ेगा शाखाओं के कार्यक्रम के रिपोर्ट अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति -- उत्तरपूर्वी ओहायो शाखा साहित्यिक संध्या, विश्व-हिंदी दिवस, जनवरी २०२२ डॉ. तस्नीम लोखंडवाला लेखन और प्रस्तुति डॉ. सुनीता द्विवेदी अनुवाद ‘अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति की उत्तरपूर्वी ओहायो शाखा ने ‘विश्व हिंदी दिवस’ के उपलक्ष्य में रविवार, २३ जनवरी २०२२ को ज़ूम के माध्यम से आभासी ‘साहित्यिक-संध्या’ का आयोजन किया था। इस साहित्यिक संध्या का कुशल सञ्चालन श्रीमती रश्मि चोपड़ा और डॉ. सुनीता द्विवेदी ने किया था। इस कार्यक्रम में स्थानीय कवियों के आलावा भारत के तीन सुप्रसिद्ध साहित्यकारों और कवियों ने भी अपनी मौलिक रचनाओं का वाचन कर कार्यक्रम को रोचक और सफल बनाया। शाखा-प्रमुख डॉ. शोभा खंडेलवाल जी ने सभी अतिथियों और श्रोताओं का स्वागत किया। तत्पश्चात, शाखा की मातामही आदरणीय श्रीमती सुशीला मोहनका जी के आशीर्वचनों से साहित्यिक संध्या प्रारम्भ हुई। इस कार्यक्रम में प्रस्तुतियों की सुंदर शुरुआत भारत से आये प्रतिष्ठित कहानीकार माननीय डॉ. श्री अशोक लव जी की बहुत ही मार्मिक लघु-कथा - “भगवान सुनते हैं”, से हुई। इस कहानी में उन्होंने कोविड की महामारी के चलते श्रमिक-पलायन और अनजान लोगों की दया और उदारता का बहुत ही सजीव और मार्मिक चित्रण कर सभी सुनने वालों को भावुक कर दिया। भारत से आये सुप्रसिद्ध साहित्यकार, कवि, व्यंग्यकार और पत्रकार माननीय डॉ. श्री हरीश नवल जी ने अपने अद्भुत काव्य से श्री कृष्ण और कर्ण (स्वयं) के बीच के अंतर्द्वंद को बहुत ही सुंदर और तर्कनीय दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। ऎसे जटिल विषय पर इतने सुंदर काव्य की रचना डॉ. नवल जी और उनके समरूप साहित्यकारों को ही सुलभ है। उनकी दूसरी काव्य रचना - “अग्नि साक्षी” में उन्होंने एक बार फिर शब्दों के मायाजाल से अग्नि के विभिन्न स्वरूपों के चित्रण से सभी का मन मोह लिया। सुप्रसिद्ध कवयित्री और साहित्यकार, लखनऊ-निवासी डॉ. श्रीमती अर्चना श्रीवास्तव जी की अनूठी और रोचक, आँखों पर छायाचित्र-प्रस्तुति ने आभासी-प्रांगण को मंत्रमुग्ध कर दिया। छायाचित्रों के माध्यम से उन्होंने “आँखों” द्वारा विभिन्न अभिव्यक्तियों को छंदों में बाँध कर अपने काव्य-पांडित्य से सभी को प्रभावित कर दिया। सचेतन “ख़ारी स्याही में भीगे शब्दों का काफिला” सभी दर्शकों को इस सरिता में बहा ले गया। आंखों और पलकों के आपसी स्नेह से ओतप्रोत उनकी दूसरी रचना से सभी को मंत्रमुग्ध कर एक बार फिर अपने असीम साहित्यिक कौशल और उत्कृष्ट दृष्टिकोण का परिचय दिया। विश्व-प्रसिद्ध और माननीय कवियों और साहित्यकारों की उत्कृष्ट रचनाओं को सुन आभासी-सभागृह के दर्शक पूर्णतः मंत्रमुग्ध हो चुके थे। कार्यक्रम को गति देने सूत्रधारों ने स्थानीय कवियों को अपनी मौलिक रचनाओं के पाठन हेतु आमंत्रित किया। क्लीवलैंड की वरिष्ठ कवयित्री श्रीमती विमल शरण जी ने सदैव की तरह, दिल को छूने वाली, शब्दों से अलंकृत काव्य रचना “अमेरिका में पहला हिमपात - प्रथम अनुभव” प्रस्तुत की। बर्फ से ढंकी सृष्टि में कहीं दिखाई दी हरियाली के माध्यम से जीवन के सकारात्मक मर्म को उन्होंने बहुत ही कुशलता से कविता का रूप दे दिया। अगली प्रस्तुति में डॉ. तस्नीम लोखंडवाला जी ने “एक योजक चिन्ह हूँ मैं” शीर्षक कविता से प्रवासी-भारतीयों की मनःस्थिति को अत्यंत कुशलतापूर्वक रची, अनोखी कविता के रूप में प्रस्तुत कर सदन में उपस्थित प्रत्येक हृदय में स्पंदन उत्पन्न कर दिया। श्रीमती रेणु चढ्ढा जी ने अपने अनुपम, भावपूर्ण कविता - “तन हारा, मन जीता”, से सभी दर्शकों को न सिर्फ मोहित किया, अपितु अपनी अलंकृत रचना के माध्यम से सशक्त लेखनी का भी परिचय दिया। उनकी पंक्ति, “गीली मिट्टी कलश बनाये” इस बात का उत्कृष्ट प्रमाण है। श्रीमती विम्मी जैन जी ने “हिंदी मेरी भाषा” शीर्षक वाली रोचक कविता के माध्यम से मातृभाषा हिंदी के प्रति अपने प्रेम और गर्व का मनोहरी चित्रण प्रस्तुत कर ‘विश्व हिंदी दिवस’ के आयोजन को अपनी काव्यांजलि के उपहार से साकार बना दिया। श्रीमती वंदना भरद्वाज जी अक्सर अपनी तीखी कलम से सामाजिक कुरीतियों पर काव्यात्मक प्रहार करतीं हैं। इस बार उन्होंने एक अलग विषय पर बहुत सुंदर काव्य-गद्य प्रस्तुत कर समस्त सुनने वालों को अपनी जन्मभूमि में बीते बचपन की मधुर स्मृतियों और सरल ज़िंदगी की सैर करवा दी। उनकी कविता - “ये मेरी ज़िन्दगी” इस सरल जीवन से अनभिज्ञ युवा पीढ़ी के लिए एक अनमोल उपहार है। पर्यावरण-प्रिय और माननीय कवि एवं शायर डॉ. उत्सव चतुर्वेदी जी ने अपनी कटाक्ष रचना - “चिड़ियों के दाने” के माध्यम से मानव द्वारा पर्यावरण के विनाश का विवरण सुना सभी दर्शकों को आत्मग्लानि का बोध कराया। उनकी पंक्ति, “उनका (चिड़ियों का) हक उन्हीं को दे रहा हूँ” मन-मस्तिष्क पर तीखा प्रहार करती है और “रेत में सिर छुपाये शुतुरमुर्ग” की उपमा को साकार करती है। इस संध्या की अंतिम रचना डॉ. सुनीता द्विवेदी की थी। अपनी कविता - “पादुका” के माध्यम से उन्होंने एक स्त्री के जीवन को दर्शाया जो समाज के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर देती है, समाज के प्रहार सहती है, अपना पक्ष कहने का अवसर ढूंढती रहती है लेकिन दोगले समाज पर मुस्कुरा कर अंततः मौन ही रह जाती है। अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति की उत्तरपूर्वी ओहायो शाखा की अध्यक्षा महोदया श्रीमती किरण खेतान जी ने धन्यवाद ज्ञापन किया । उन्होंने सभी माननीय अतिथियों, और कवियों को इस कार्यक्रम के सफल आयोजन के लिए बधाई दी और धन्यवाद प्रकट किया। आभासी पटल से जुड़े सभी दर्शकों को भी साभार धन्यवाद दिया। अंत में, इस कार्यक्रम के निर्बाध सञ्चालन हेतु श्रीमती प्रेरणा खेमका जी, श्रीमती अलका खंडेलवाल जी, श्री अशोक खंडेलवाल जी, श्री अजय चढ्ढा जी, श्री पवन खेतान जी, डॉ. शोभा खंडेलवाल जी तथा अन्य आयोजकों, व तकनीकी टीम के सदस्यों के प्रति धन्यवाद प्रकट किया। ***

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